स्पेसल स्टोरी दैनिक मीडिया
संवददाता मनीष सेन

धमतरी जिले के वनांचल इलाके मे रहने वाले आदिवासी गोड समाज में मृत व्यक्ति के मठ (स्मारक) पर उसके पसंदीदा वस्तुओं की आकृति बनाने की एक अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है…और यह परंपरा अब भी अदिवासी बरकारर रखे हुऐ है…वही इस आदिवासियो की परंपरा को दिगर समाज वाले भी धीरे धीरे अपनाने लगे है….

नगरी ब्लाक के सिहावा, बेलर ,कसपुर,बरबाधा,इलाका वनांचल क्षेत्र है आदिवासी बाहुल होने के कारण यहां सदियों पुरानी परंपराएं अब भी कायम है….यहा के गोड समाज में माता या पिता अथवा परिवार के शादीशुदा सदस्य की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के बाद मठ बनाया जाता है..चबूतरानुमा मठ के ऊपर मृतक के पसंद के वस्तुओं की आकृति बनाई जाती है… आमतौर पर पुरुष मठ में बैलगाडी, घोडा, हाथी, भाला पकडे दरबान, जीप, कार, मोटरसाइकिल और स्कूटर की आकृति बनाई जाती है…वही महिला मठ में सिर्फ कलश ही बनाने का रिवाज है..और अब ये परंपरा दिगर समाजो मे भी शुरू होने लगी है…

सुरेश कोर्राम ने बताया कि हमारे आदिवासी समाज मे जब किसी व्यक्ति का मृत हो जाते है तो पुरुष मठ में बैलगाडी, घोडा, हाथी, भाला पकडे दरबान, जीप, कार, मोटरसाइकिल और स्कूटर की आकृति बनाई जाती है…वही महिला मठ में सिर्फ कलश ही बनाने का रिवाज है..और आज भी परंपरा बरकारर है,वहीं स्थानीय सुरेश सोरी ने कहा हमारे गोड आदिवासी समाज में माता या पिता अथवा परिवार के शादीशुदा सदस्य की मृत्यु होने पर मृतक के पसंद के वस्तुओं की आकृति बनाई जाती है… उसके अंतिम संस्कार के बाद मठ(स्मारक) बनाया जाता है..समाज के लोग बताते है कि उनके यहा मरने वाले को लोग जो नाम से जानते है या फिर मषहूर रहते है उसी तरह का मठ उस व्यक्ति का बनाया जाता है…एक व्यक्ति ने बताया कि उनके एक परिजन इलाके मे बहादूर नाम से मषहूर था..लोग उन्हे बहादूर नाम से बुलाते थे…इस लिये उनके मरने के बाद उनके मठ मे उनकी गदा पकडे हुई मूर्ति बनाई गई है…..

बहरहाल आदिवासिायो मे मठ मे कलाकृति बनाने की परंपरा सदियो से चली आ रही है..और इस दौर के पीढी भी अपने पूर्वजो व्दारा बनाये परंपरा को संजोय रखने का भरोसा दिला रहे है..वाकई मे आदिवासियो की रिति रिवाज और परंपरा जो सदियो से चली आ रही है..उसमे आज तनिक भी बदलाव नही देखने को मिल रही है..जो अपने आप मे अनूठा और काबिले तारिफ है…