छत्तीसगढ़ सरकार के लिए सरप्लस धान बड़ी मुसीबत बन गया है. लगभग 20 लाख मीट्रिक टन सरप्लस धान को बेचने के लिए ई-नीलामी भी की गई, लेकिन पूरा धान नहीं बिक पाया है. जबकि धान को बेचने के लिए न्यूनतम मूल्य में 50 रूपये प्रति क्विंटल की कमी भी की गई, लेकिन पूरा धान लेने के लिए सरकार को खरीदार ही नहीं मिल रहे हैं. इस साल प्रदेश में किसानों से समर्थन मूल्य में लगभग 92 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की बंपर गई. इसमें से 23.95 लाख टन चावल राज्य के पीडीएस के लिए और 24 लाख टन केन्द्रीय पूल में भारतीय खाद्य निगम यानि एफसीआई में जमा करा रही है.

इतना चांवल तैयार करने में करीब 82 लाख मीट्रिक टन धान की जरूरत पड़ी. ऐसे में सरकार के पास करीब 20 लाख मीट्रिक टन धान सरप्लस बचा हुआ है, जिसे सरकार बेच रही है. लेकिन पूरा धान अब तक नहीं बिक पाया है. इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है कि किसानों का एक-एक दाना खरीदने का दावा करने वाली सरकार के पास धान और किसान को लेकर पुख्ता योजना नहीं है. धान की बर्बादी की तस्वीर किसान के हालात को बता रही है.
कांग्रेस ने केंद्र पर लगाया आरोप
इधर, प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने बताया कि 20 लाख मीट्रिक टन धान में 9.5 लाख मीट्रिक टन धान ई-नीलामी के जरिए बेच दिया गया है. लेकिन अब भी 10.5 लाख मीट्रिक टन धान सरकार के पास बचा हुआ है. कृषि मंत्री ने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार ने पहले 60 लाख मीट्रिक टन चांवल खरीदने की बात कही थी. लेकिन छत्तीसगढ़ के साथ केन्द्र सरकार ने दोहरा मापदंड अपनाया और केन्द्र ने चांवल लेने से मना कर दिया और इसलिए सरप्लस धान बच गये हांलाकि 9.5 लाख मीट्रिक टन सरप्लस धान बिकने के बाद बाकि धान संग्रहण केन्द्रों में लाये जाएंगे और उसे भी बेचने की कोशिश होगी अगर धान की बिक्री नहीं होती है तब कस्टम मिलिंग कर चांवल का उपयोग किया जाएगा।
