मनीष सेन
बेलरगांव में रवि फसल की कटाई के बाद अब किसान खेत मे रखे पैरावट(पराली) को आग लगा रहे है।जिससे इसका धुआ पूरी तरह से गांव में फैल रहा है। ग्राम वासियों का कहना है कि इस तरह से आग लगाने से धुंवा के चलते काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।इसका सीधा असर सेहत पर पड़ रहा है वही दूसरी ओर पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। पर्यावरण प्रदूषित ना हो इस लिए खेतों में पराली और नरवाई को आग लगाने से रोकने के लिए नियम कानून बनाई गई है।
नेशनल ग्रीन ट्यूबनेशन का आदेश
पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) सख्त हो गया था । पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिये खेतों में धान की फसल लेने के बाद अगर किसान ने नरवाई या पराली में अाग लगाई तो विभाग को किसानों से हर्जाना वसूलने के भी आदेश दिया गया था।।यहाँ तक कि कई ग्रामो में एकड़ में 5 हजार रुपए की दर से जुर्माना के लिए ग्राम सभा एवं आरएईओ एवं पटवारियों के माध्यम से किसानों को अलर्ट किया गया था।इसके के लिए कई राज्यो के मुख्यमंत्रियों को एन जी टी ने फटकार भी लगाई।
बढ़ जाएगी 15 प्रतिशत उर्वरा क्षमता
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खेतों में नरवाई या पराली (पैरावट) जलाने की अपेक्षा यदि इसे वहीं सड़ा दिया जाए तो इसके अच्छे परिणाम मिलेंगे। विभाग के अनुसार अपशिष्ट को पानी और यूरिया डाल कर खेत में सड़ाया जाए तो मिट्टी की उर्वरता 15% तक बढ़ सकती है। प्रशासन के निर्देश पर विभाग गांवों में किसानों के पास यही सब तर्क रखा है और ऐसे किसानों को चेतावनी दे रहे हैं। जो कटाई के बाद खेतों में आग लगा रहे हैं।
मिट्टी व पानी को भी नुकसान
आग से खेतों में अंकुरण की क्षमता कम होती है और मिट्टी की सतह में छिपा पानी वाष्प बनकर उड़ जाता है। ऐसा करने पर जमीन का वाटर लेवल भी प्रभावित होता है और आग के धुएं से वायु प्रदूषण के कारण कार्बनिक चक्र प्रभावित होता है। मिट्टी में पाए जाने वाले केंचुए और सूक्ष्म जीव व पोषक तत्व भी मर जाते हैं। एवं मिट्टी की ऊपरी सतह जलने से भू-क्षरण बढ़ता है।