2030 तक शुक्र ग्रह के लिए दो मिशनों की तैयारी –जानिए क्या खोज करना चाहते है अंतरिक्ष वैज्ञानिक—-

 हमारे सौरमंडल की दशकों से जारी खोज में हमारे पड़ोसी ग्रहों में से एक शुक्र ग्रह की हर बार अनदेखी की गई या उसके बारे में जानने-समझने के बहुत ज्यादा प्रयास नहीं किए गए, लेकिन अब चीजें बदलने वाली हैं. नासा के सौरमंडल खोज कार्यक्रम की ओर से हाल में की गई घोषणा में दो मिशनों को हरी झंडी दी गई है और ये दोनों मिशन शुक्र ग्रह के लिए हैं. इन दो महत्वाकांक्षी मिशनों को 2028 से 2030 के बीच शुरू किया जाएगा.

धरती पर, कार्बन मुख्यत: पत्थरों के भीतर मुख्य रूप से फंसी हुआ है, जबकि शुक्र ग्रह पर यह खिसकर वातावरण में चला गया जिससे इसके वातावरण में तकरीबन 96 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड है. इससे बहुत ही तेज ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न हुआ जिससे सतह का तापमान 750 केल्विन (470 डिग्री सेल्सियस या 900 डिग्री फारेनहाइट) तक चला गया है.

ग्रह का इतिहास ग्रीनहाउस प्रभाव को पढ़ने और धरती पर इसका प्रबंधन कैसे किया जाए, यह समझने का बेहतरीन मौका उपलब्ध कराएगा. इसके लिए ऐसे मॉडलों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें शुक्र के वायुमंडल की चरम स्थितियों को तैयार किया जा सकता है और परिणामों की तुलना धरती पर मौजूदा स्थितियों से कर सकते हैं.

सतह की चरम स्थितियों का एक कारण है जिसकी वजह से ग्रह खोज के मिशनों से शुक्र को दूर रखा गया. यहां का अधिकतम तापमान 90 बार जितने उच्च दबाव जितना है (तकरीबन एक किलोमीटर नीचे के पानी के प्रवाह जितना). यह दबाव इतना है जो तत्काल अधिकांश लैंडरों को नष्ट कर सकता है. शुक्र तक अब तक गए मिशन योजना के मुताबिक नहीं रहे हैं. अब तक किए गए अधिकांश अन्वेषण 1960 से 1980 के दशक के बीच सोवियत संघ द्वारा किए गए हैं. इनमें कुछ उल्लेखनीय अपवाद हैं जैसे 1972 का नासा का पायनीर वीनस मिशन और 2006 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का ‘वीनस एक्सप्रेस मिशन

नासा के दो चुने गए मिशनों में से पहले को दाविंची प्लस के नाम से जाना जाएगा. इसमें एक अवतरण जांच उपकरण शामिल है जिसका अर्थ है कि इसे वायुमंडल में छोड़ा जाएगा जो जैसे-जैसे वायुमंडल से गुजरेगा माप लेता जाएगा. इस अन्वेषण के तीन चरण होंगे जिसके पहले चरण में पूरे वायुमंडल की जांच की जाएगी. इसमें विस्तार से वायुमंडल की संरचना को देखा जाएगा जो बढ़ते सफर के दौरान प्रत्येक सतह पर सूचनाएं उपलब्ध कराएगा.

दूसरा मिशन ‘वेरिटास’ के नाम से जाना जाएगा जो ‘वीनस एमिशिविटी’ , ‘रेडियो साइंस’, इनसार’, ‘टोपोग्राफी’ और स्पेक्ट्रोस्कोपी’ का संक्षिप्त रूप है. यह और ऊंचे मानक वाला ग्रह मिशन होगा. ऑर्बिटर अपने साथ दो उपकरण ले जाएगा जिनकी मदद से सतह का मानचित्र तैयार किया जाएगा और दाविंची से मिले विस्तृत इन्फ्रारेड अवलोकनों का पूरक होगा.

इसका पहला चरण विभिन्न रेडियो तरंगों की सीमाओं को देखने वाला कैमरा होगा. यह शुक्र ग्रह के बादलों के पार तक देख सकता है जिससे वायुमंडलीय एवं मैदानी संरचना की जांच हो सकेगी. दूसरा उपकरण रडार है और यह पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों पर अत्यधिक इस्तेमाल होने वाली तकनीक का प्रयोग करेगा. उच्च रेजोल्यूशन वाली रडार छवियां और अधिक विस्तृत मानचित्र पैदा करेगा जो शुक्र के सतह की उत्पत्ति की जांच करेगी.

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